Thursday, December 12, 2019

अर्थव्यवस्था में सुस्ती, लेकिन बैंकों के घपलों में तेज़ी-नज़रिया

कुछ समय पहले तक भारत की अर्थव्यवस्था को कितनी अच्छी तरह से चलाया गया है उस पर सरकार को 10 में से आठ नंबर तो अक्सर दिए जाते थे.

कुछ लोग तो 10 में 10 भी दे रहे थे. दुनिया भर के अर्थशास्त्री सरकार की नीतियों का गुणगान करते थकते नहीं थे. लेकिन अब कई लोगों का विश्वास हिल गया है. पिछले छह तिमाही के गिरते विकास दर ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी है.

बैंकों में हो रहे फ़र्ज़ीवाड़े के मामलों से जुड़े भारतीय रिज़र्व बैंक के आंकड़े ने आम जनता के विश्वास पर एक और करारा प्रहार किया है.

रिज़र्व बैंक के अनुसार 2014 के बाद सरकारी बैंकों में होने वाले घपले में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोत्तरी हुई है और ये चार गुना बढ़ गया है. 2017-18 के मुक़ाबले 2018-19 में भी इसमें 70 फ़ीसदी से ज़्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है.

रिज़र्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार 2013-14 में ख़त्म हुए साल में सरकारी बैंकों में होने वाले घपले 10,171 करोड़ रुपए के थे. अगले साल ये बढ़कर 19,455 करोड़ रुपए पहुँच गया.

2015-16 में इसमें थोड़ी गिरावट आई और ये 18,699 करोड़ रुपए हो गया. लेकिन 2016-17 में इसमें फिर तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई और ये 23,944 करोड़ रुपए तक पहुँच गया.

उसके बाद घपलों में ज़बरदस्त तेज़ी देखी गयी और 2017-18 में ये 41,168 करोड़ तो 2018-19 में 71,543 करोड़ रुपए पर पहुंच गया.

हैरानी की बात है कि फ़र्ज़ीवाड़े का सिलसिला और तूल पकड़ रहा है क्योंकि वित्त मंत्री ने राज्य सभा में पिछले दिनों कहा कि अप्रैल 2019 में शुरू हुए कारोबारी साल के पहले छह महीने में 95,760 करोड़ रुपए के घपले की ख़बर है.

इससे पहले साल, इन्हीं छह महीनों में ये आंकड़ा 64,509 करोड़ रुपए था.

फ़िलहाल ये साफ़ नहीं है कि ये तेज़ी से बढ़ते आंकड़े की वजह, पहले से ज़्यादा मुस्तैदी है या फिर वाकई सरकारी बैंकों में घपलों की संख्या बढ़ गई है.

22,000 से ज़्यादा शाखाओं वाले स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में 2018-19 में जो घपले सामने आए, उनमें 25417 करोड़ रुपए से जुड़े मामले थे.

पंजाब नेशनल बैंक (10,822 करोड़ रुपए) और बैंक ऑफ़ बड़ौदा (8,273 करोड़ रुपए) अगले दो पायदान पर थे. ये तीनों देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक हैं.

रिज़र्व बैंक के अनुसार इन वर्षों में बैंकों में जो भी फ़र्ज़ीवाड़ा हुआ है उनमें से 55 फ़ीसदी सरकारी बैंकों में ही अंजाम दिया गया.

सभी घटनाओं में जो पैसों का गबन हुआ है उसका 90 फ़ीसदी हिस्सा सरकारी बैंकों से ही गया है.

कुछ लोगों का ये कहना है कि पिछले सालों में पहले से ज़्यादा सख्ती है इसलिए ऐसे ज़्यादा मामले सामने आ रहे हैं.

बैंकों में हो रहे बड़े घपलों पर अख़बारों की नज़र बनी रही लेकिन छोटे घपले ने मानों सरकारी बैंकों की रीढ़ तोड़ दी. अब ऐसे घपले बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं हैं.

2017 में जारी हुए राष्ट्रीय आर्थिक अपराध ब्यूरो के आँकड़ों के मुताबिक़ आर्थिक अपराधों की संख्या में भी वृद्धि हुई है.

2014 में प्रति दस लाख लोगों के बीच 110 अपराध दर्ज किए गए थे जो तीन साल बाद बढ़ कर 111.3 हो गए. इनमें एटीएम से जुड़े अपराध से लेकर जाली नोट और दूसरे अपराध भी शामिल हैं.

देश के बड़े शहर जहां आर्थिक अपराध दर्ज किए जाते हैं, उनमें जयपुर का नाम अब सबसे ऊपर है.

आँकड़ों की मानें तो लखनऊ, बेंगलुरू, दिल्ली और हैदराबाद का नाम उसके बाद आता है. कानपुर, मुंबई, पुणे, नागपुर और ग़ाज़ियाबाद इस मामले में अगले पांच पायदान पर हैं.

रिज़र्व बैंक के नए नियमों के अनुसार 50 करोड़ रुपए के ऊपर के सभी के मामलों की धोखाधड़ी के नज़रिए से भी जांच करना ज़रूरी हो गया है.

ऐसे मामलों पर नज़र रखने के लिए 2015 में एक केंद्रीय धोखाधड़ी रजिस्ट्री भी बनाया गया है.

रिज़र्व बैंक ने अब मुद्रा लोन को लेकर बैंकों के लिए चेतावनी जारी कर दी है. कई बैंकों से ऐसे क़र्ज़ वापस नहीं होने की ख़बरों के बाद रिज़र्व बैंक का ये निर्देश आया है कि ऐसे क़र्ज़ देते समय बैंकों को और सावधानी बरतना ज़रूरी है.

2015 में लॉन्च किए गए प्रधानमंत्री मुद्रा लोन योजना के तहत छोटे व्यवसाय के लिए सस्ते लोन देने का कार्यक्रम चलाया गया है.

इससे छोटे और मंझोले उद्योगों को 50 हज़ार से 10 लाख रुपए तक के क़र्ज़ दिए जाते हैं.

बैंकों के लिए ऐसे लोन अब सरदर्द बन गए हैं क्योंकि, सरकार ने संसद में बताया कि इस योजना के तहत अब तीन लाख दस करोड़ रुपए के लोन वापस नहीं किए गए हैं.

रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर ने पिछले महीने कहा कि बैंकों को अपने ग्राहकों के क़र्ज़ वापस करने की क्षमता को बेहतर समझने की ज़रूरत है.

क्या सरकारी बैंकों को रेवड़ी बांटने की इस पुरानी आदत ने नई मुसीबत खड़ी कर दी है?

इस परीक्षा के नंबर फिलहाल नहीं दिए गए हों, लेकिन अर्थव्यवस्था की नाव को यहां से और डावाँडोल करने में मुद्रा लोन योजना का हाथ हो सकता है.

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